रविवार, दिसंबर 21, 2008

खयाल ...

ना बंदिशों की परवाह करता हूँ,
ना अपनी आजादी पे गुमान करता हूँ,
मैं जीता हूँ खुले आसमान के नीचे,
खुली हवाओं में सांस भरता हूँ

ना खुशियों में खोया रहता हूँ,
ना ग़मों के सागर में बहता हूँ,
जो दिल में बात आगयी अपने,
जुबान से भी वाही कहता हूँ,

ना शिकायतों से इंकार करता हूँ,
ना किसी से शिकायत करता हूँ,
रेत पे बनी तसवीरें हैं, मिट जाती हैं,
मैं पत्थरों पे कलाकारी करता हूँ

प्यार है मुझमें तो कोई मिटा नहीं सकता,
तकरार है मुझमें तो कोई हटा नहीं सकता,
मैं मगन हूँ अपनी मस्ती में हरपल,
बिखर गया तो कोई मना नहीं सकता

मैं यादो को भी रखता हूँ,
मैं वादों को भी रखता हूँ,
मैं शांत हूँ समंदर की तरह, छेडो ना,
मैं भीतर, उफानों को भी छुपा रखता हूँ


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