सोमवार, दिसंबर 28, 2009

कल्पना

बहुत दिनों के बाद शब्दों से,
आज फिर एक तस्वीर बनाई है,
अपनी कल्पना के आभूषणों से,
उसकी छवि सजाई है|
रंग बिखेरे सपनों के,
इछाओं से श्रृंगार किया,
संगीत भरा फिर सासों में,
उसको जीवन का हार दिया|
अपना उसको हर्ष दिया,
बाँहों का अपनी स्पर्श दिया,
भावनाओं की अनुभूति देकर,
उसको जीवन का अर्थ दिया|
फिर रचना की एक मधुबन की,
फूलों से उसको महकाया,
यौवन की मस्त बहारों से,
फिर उस मधुबन को बहकाया|
नयनाभिराम, वो मन मोहिनी,
मैं चंचल हूँ, वो चंचलता,
नवमालिका सी महके वो,
मैं मादक हूँ, वो मादकता|
समय गुज़ारा साथ में जो,
ना जाने कब वो बीत गया,
मैं हारा दिल उसपे अपना,
और हार के भी जीत गया|
बात हुई फिर जाने की,
वादा लेकर फिर आने का,
आँखों ने स्वीकार किया,
कल्पना से साथ निभाने का|